सितम्बर २०१३ के महिने में हम लोग माता वैष्णोदेवी के दर्शन के लिये तैयार थे । ये मेरा सौभाग्य ही था जो मुझे ये अवसर मिला । मेरी कोई पहले से तैयारी नही थी, परन्तु कहते है ना कि जब माँ का बुलावा आता है तब ही ये शुभ कार्य सम्पन होता है । हुआ ये कि यात्रा के ३-४ दिन पहले मेरे दोस्त बृजेश का फोन आया, उसने बताया कि वो लोग वैष्णोदेवी दर्शन के लिये जा रहे है और उनके पास एक अतरिक्त टिकट है । मैं तो हमेशा घूमने के तैयार रहता हुँ इसलिए मैंने तुरन्त हाँ बोल दिया । माता के दरबार में मेरी ये पहली यात्रा थी, मैं बहुत ही खुश था ।
मुझे मिलाकर सात लोग थे (विवेक, अनुराग, बृजेश, पवन, आदित्या, पंकज और उज्जल), सबका टिकट नई दिल्ली से जम्मूतवी तक दुरंतो एक्सप्रेस ट्रैन में आरक्षित था । २१ सितम्बर की रात हम लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से जम्मू के लिये रवाना हो गये और २२ की सुबह जम्मू पहुंच गये । जम्मू से कटरा तक का सफर हमने बस से पूरा किया, जो कि टेढ़े-मेड़े पहाड़ी रास्ते से होते हुए कटरा पहुंची । बस बीच में एक बार रुकी भी थी जहाँ हम लोगो ने चाय और पकोड़े खाकर थोड़ी पेट पूजा की थी । जम्मू से कटरा तक सफर करीब २-३ घंटे का था, रास्ते में हरी भरी पहाड़ियाँ मन मोह रही थी । मेरे लिए ये सब और भी ज्यादा सुहाना था क्योंकि माँ के दर्शन करने की इच्छा पूरी होने वाली थी । कटरा पहुंच कर सबसे पहले हम लोगो ने दर्शन के लिये टोकन लिया, उसके बाद होटल बुक किया । होटल जाते ही हमने सबसे पहले चाय पीकर थोड़ी थकान कम की । अब सब लोग नहा-धो कर तैयार हो गये थे, समय करीब शाम के ७ हुआ था ।
होटल रूम के बाहर से त्रिकूट पर्वत का मनोहर दृश्य दिखाई दे रहा था । रात के अंधियारे में पर्वत पर पड़ती हुई रोशिनी से पूरा पर्वत किसी आकाश गंगा की तरफ प्रतीत हो रहा था । लग रहा था मानो असंख्य तारे उस पर्वत पर उतर आये हो ।
शाम के ७:३० बजे के करीब हमने शेर ऐ पंजाब रेस्टोरेन्ट में खाना खाया और १-१ गिलास लस्सी भी पिया। खाना खा कर हम लोग ८:२० बजे: तक दर्शन गेट के पास पहुंच गये । कुछ फोटो खिचवाने के बाद माँ के जयकारे के साथ हम लोगो ने इस पवित्र यात्रा की शुरुवात की । चारो ओर भक्ति का मौहोल था और दुकाने भी पूजा पाठ के सामानो से सजी हुई थी । इन सबके बीच होते हुए हम अपने पहले पड़ाव बाण गंगा तक पहुंच गये, जहाँ रुक कर हम सब ने थोड़ा समय बिताया । वहाँ की यादों को कैमरे में सजाने के बाद आगे की यात्रा शुरू हुई और फिर कुछ देर के बाद हम ३ टुकड़ियों में बट गये ।
यात्रा में पानी ले जाने की जरुरत नही पड़ती है क्योकि जगह-जगह इसकी व्यस्था रहती है । मैं, बृजेश और आदित्या साथ में थे, बाकी लोग हसमे आगे निकल चुके थे । इसलिए हम लोगो ने एक १२६ सीढ़ी का रास्ता चुना परन्तु अब ये समझ नही आ रहा था कि बाकी लोग हमसे आगे है या पीछे । वैसे जाते समय सीढ़ी से जाना और थकान भरा हो सकता था इसलिए आगे से हम सीधे रास्ते पर बढ़ते रहे । माँ के दर्शन की इच्छा के साथ हम लोग अर्द्धकुंवारी पहुंच गये और टेलीफोन बूथ से बाकी लोगो से सम्पर्क किया, बाकी लोग हमसे काफी पीछे रह गए थे । शायद एक सीढ़ी ने १-२ किमी का सफर कम कर दिया था, हमने वहाँ रूककर कॉफ़ी पिया और बाकी साथियो का इंतजार करने लगे । कुछ ही देर में सारे लोग आ गए, थोड़ा आराम करने के बाद आगे की यात्रा शुरू हुई ।
कुछ देर बाद पंकज ने जोर-जोर से माँ का जयकारा लगाना शुरू कर दिया जिससे बाकी लोगो में भी जोश आ गया । आस-पास आते जाते श्रदालुओ ने भी माँ का जयकारा लगाना शुरू कर दिया जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया था । जैसे-जैसे माता का भवन पास आ रहा था हमारा रोमांच बढ़ता ही जा रहा था । बीच में हम लोग एक बार और रुके, वहाँ से पूरा कटरा शहर दिखाई दे रहा था । कुछ देर बिश्राम के बाद, हम माँ के भवन की तरफ बढ़ने लगे और एक बार फिर हम लोग आगे-पीछे हो गये । रात के १२ बज: रहा था और अब हम लगभग भवन के पास आ गये थे । अनुराग और पवन भवन से १ किमी पहले रूककर बाकी लोगो का इंतजार कर रहे थे । वहाँ पहुंचकर हम लोगो ने एक दुकान पर जूस पिया, वहाँ पर बंदर बहुत थे जो कि लोगो से जूस का डिब्बा छीन ले रहे थे ।
रोमांच भरे सफर के साथ अब हम माँ के भवन पहुंच चुके थे । सबसे पहले हमने एक कमरा लिया जहाँ सामान रखने के लिए लॉकर की व्यवस्था थी उसके बाद हम लोगो ने पुनः नहाया । प्रसाद लेने के बाद, हमने माता वैष्णोदेवी की पवित्र गुफा के दर्शन किया । भीड़ कम होने से माँ के दर्शन आसानी से हो गए । रात के करीब ३ बज: रहे थे और पंकज ने बताया की भैरव मंदिर में ५:३० बजेः आरती का समय हो जाता है इसलिए हमे उससे पहले दर्शन कर लेने चाहिए । माता के दर्शन के बाद हम लोगो ने थोड़ा नास्ता किया और भैरव घाटी की तरफ जाने लगे । भैरव मंदिर की खड़ी चढाई थी जो की और भी ज्यादा कठिन थी परन्तु माँ की कृपया से हम लोगो ने उसे भी पूरा कर लिया । सुबह ५ बजेः हमने भैरव बाबा के दर्शन किये फिर सूर्य उदय का इंतजार करने लगे ।
सूर्यादय के मनोरम छटा ने सबका मन मोह लिया था । बहुत सारे फोटो खिचवाने के बाद, हम लोगो नीचे उतरने लगे । रास्ते में रूककर हम सब ने भोजन किया फिर २५०० सीढ़ियाँ उतरते हुए मात्र २ घंटे में नीचे आ गए । वहाँ से ऑटो लेकर हम होटल पहुंचे और फिर सो गए । शाम को खाना खाकर हम जम्मू आ गए फिर रात की ट्रैन से वापस दिल्ली ।